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RELATION IN AYURVEDA, YOGA AND PRAKRITIK CHIKITSA; A REVIEW
Dr. Shaveta Arora*, Dr. Veenu Malhotra (M.D, Phd)
. Abstract आयुर्वेद, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा में समन्वय सार- 1. मनुष्य जीवन का सर्वोपरिउद्देश्य चारों पुरुषार्थों को अर्थात् धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष को प्राप्त करना है, जिसका वास्तविक साधन और आधार स्वस्थ शरीर है। 2. स्वास्थ्य की रक्षा करने के उपाए बताते हुए आयुर्वेद, योग व प्राकृतिक चिकित्सा की विधियाँ सर्वांगीण हंै अर्थात् ये शरीर की शारीरिक एवं मानसिक दोनों अवस्थाओं में उपयोगी हैं, ये न केवल रोगों की चिकित्सा करते हैं बल्कि शरीर की व्याध्ाि क्षमता को बढ़ाकर, रोगों की उत्पत्ति में रोध्ाक भी हैं अर्थात् इनमें उपचार की तुलना में स्वास्थ्य वर्धन पर अधिक महत्व दिया जाता है, फलस्वरूप आयु की कामना हेतु, इनका अध्ययन आवश्यक है। 3. आयुर्वेद शरीरेन्द्रियसत्त्वात्मसंयोग रूप जीव के स्वास्थ्य परीक्षण तथा व्याधि के निदान, लिंग तथा चिकित्सा का दायित्व लेकर चलता है, वहीं योग सिद्धान्ततः सत्त्व तथा चेतना का विज्ञान ळे तथा प्राकृतिक चिकित्सा के अन्तर्गत शुद्ध वायु और सूर्य की किरणें प्राकृतिक रूप से संक्रामक जीवाणुओं को नष्ट करते हैं और उनके वृद्धि व प्रसार को रोकते हैं। Keywords: . [Full Text Article] [Download Certificate] |
