आयुर्वेद और आधुनिक अवधारणा में रसाग्नि पर एक समीक्षा लेख
Prem Kant Yadav* and Sandhya Kushwaha
Abstract
संस्कृत वाङ्मय में अग्नि शब्द की उत्पत्ति अंगति व्याप्नोति इति अग्निः अर्थ में अंग धातु से हुई है । इसका तात्पर्य सर्वत्र व्याप्त रहने वाला पदार्थ । यज्ञो में इसे आगे ले जाया जाता है, इसलिए इसे अग्नि कहते हैं । आचार्य चरक अनुसार मुख्य तीन प्रकार की अग्नियॉ है -1-पाचकाग्नि 2-भूताग्नि 3- धात्वाग्नि देह में स्थित सप्त धातुओ की पृथक् - पृथक् अग्नियॉ होती है। इनकी क्रिया के परिणाम स्वरूप धातु उपधातु एवं धातुमलों का निर्माण होता है । धात्वाग्नि में सात रसाग्नि रक्ताग्नि मांसाग्नि मेदोग्नि अस्थ्याग्नि मज्जाग्नि एवं शुक्राग्नि की गणना की गयी है। रस धातु में उपस्थित पाचकांश और इन पाचकांशो की क्रियाओ को सम्पादित करने हेतु जिस उष्मा की आवश्यकता होती है वह दोनो को सम्मिलित रूप से रसाग्नि कहा जाता है ।
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